अज़्मत-ए-शहर-ए-अना शान-ए-बशर की सूरत मेरे शानों पे कोई है मिरे सर की सूरत रोज़ उतरता है समुंदर में सुनहरा सूरज रोज़ बन जाती है इक दीदा-ए-तर की सूरत दिल जो सहरा के सराबों से मिरा ऊब गया याद आई मुझे भूले हुए घर की सूरत आ के नज़दीक मिरे जलने का मंज़र देखो दूर से शो'ला भी लगता है शरर की सूरत आहटें क़दमों की मोहलत नहीं देतीं वर्ना देखते रहते हैं रस्ते भी सफ़र की सूरत कौन से अहद में खोली हैं ये आँखें हम ने ऐब लगते हैं 'सुख़न' सब के हुनर की सूरत