अजीब छाया है ख़ौफ़-ओ-हिरास आँखों में तुम्हारा दर्द नहीं है उदास आँखों में तमाम दश्त पे तारी है वज्द का आलम जुनूँ का रक़्स सितारा-शनास आँखों में गए ज़मानों से रिश्ता मिरा नहीं टूटा अधूरे ख़्वाबों की रक्खी है बास आँखों में हर एक चेहरे से ऐसा धुआँ नहीं उठता ये ख़ास रौशनी होती है ख़ास आँखों में ये कैसा ख़्वाब सजा है 'रबाब' कुछ दिन से कि कम नहीं कभी होती मिठास आँखों में