अजीब नश्शा है होश्यार रहना चाहता हूँ मैं उस के ख़्वाब में बेदार रहना चाहता हूँ ये मौज-ए-ताज़ा मिरी तिश्नगी का वहम सही मैं इस सराब में सरशार रहना चाहता हूँ सियाह चश्म मिरी वहशतों पे तंज़ न कर मैं क़ातिलों से ख़बर-दार रहना चाहता हूँ ये दर्द ही मिरा चारा है तुम को क्या मालूम हटाओ हाथ मैं बीमार रहना चाहता हूँ इधर भी आएगी शायद वो शाह-बानू-ए-शहर ये सोच कर सर-ए-बाज़ार रहना चाहता हूँ हवा गुलाब को छू कर गुज़रती रहती है सो मैं भी इतना गुनहगार रहना चाहता हूँ