अजीब रंग अजब हाल में पड़े हुए हैं हम अपने अहद की पाताल में पड़े हुए हैं सुख़न-सराई कोई सहल काम थोड़ी है ये लोग किस लिए जंजाल में पड़े हुए हैं उठा के हाथ पे दुनिया को देख सकता हूँ सभी नज़ारे बस इक थाल में पड़े हुए हैं जहाँ भी चाहूँ मैं मंज़र उठा के ले जाऊँ कि ख़्वाब दीदा-ए-अमवाल में पड़े हुए हैं मैं शाम होते ही गर्दूं पे डाल आता हूँ सितारे लिपटी हुई शाल में पड़े हुए हैं वो तू कि अपने तईं कर चुका हमें तकमील ये हम कि फ़िक्र-ए-ख़द-ओ-ख़ाल में पड़े हुए हैं इसी लिए ये वतन छोड़ कर नहीं जाते कि हम तसव्वुर-ए-'इक़बाल' में पड़े हुए हैं सवाब ही तो नहीं जिन का फल मिलेगा मुझे गुनाह भी मिरे आ'माल में पड़े हुए हैं तमाम अक्स मिरी दस्तरस में हैं 'आज़र' ये आइने मिरी तिमसाल में पड़े हुए हैं