अज़िय्यत भरी कब मिरी ज़िंदगी है इसी ज़िंदगी में ही ताबिंदगी है कई बार इस बात को परखा मैं ने तकब्बुर में पोशीदा शर्मिंदगी है मुसीबत में ग़ैरों के आए हैं जो काम इबादत वही है वही बंदगी है नहीं है कहीं एक दीपक भी रौशन कहीं रौशनी की ही रख़शंदगी है ज़रा माँगने का सलीक़ा तो जानो ख़ज़ाने में उस के नहीं कुछ कमी है ये इक राज़ है क्या किसी को बताऊँ मिरी ज़िंदगानी तो फ़र्ख़ंदगी है हर इक शे'र लिखता है ख़ून-ए-जिगर से यही तेरे 'साहिल' की दीवानगी है