अजनबी दिल की अजब तर्ज़-ए-बयाँ थी पहले

अजनबी दिल की अजब तर्ज़-ए-बयाँ थी पहले
लब थी तस्वीर निगाहों में ज़बाँ थी पहले

हम ने ता-सुब्ह जलाए हैं वफ़ाओं के चराग़
तेरे कूचा में भी क़दर-ए-दिल-ओ-जाँ थी पहले

आज हर गाम पे ज़ंजीर है हर बात पे दार
इतनी मक़्बूल कहीं उम्र-ए-रवाँ थी पहले

दैर-ओ-का'बा से निकल आए तो आराम मिला
हम को भी इक ख़लिश-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ थी पहले

हुस्न-ए-यूसुफ़ को मिली ख़िदमत-ए-ज़िंदाँ 'सैफ़ी'
बे-गुनाही भी बड़ी आफ़त-ए-जाँ थी पहले


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