अक़्ल-ओ-दानिश में किसी से नहीं कमतर हम लोग

अक़्ल-ओ-दानिश में किसी से नहीं कमतर हम लोग
वक़्त वाक़िफ़ है कि हैं कितने क़द-आवर हम लोग

कैसे डर जाएँगे धमकी से तिरी ऐ नादाँ
क्या तू वाक़िफ़ नहीं हैं कितने दिलावर हम लोग

हम मुसलमान हैं और पढ़ते हैं हक़ का कलिमा
सारी दुनिया के तक़ाबुल में हैं बरतर हम लोग

गरचे मुफ़्लिस हैं मगर दौलत-ए-दीं रखते हैं
देख कर हम को न समझें कि हैं कमतर हम लोग

सामने लश्कर-ए-बातिल था हज़ारों का मगर
डट गए हक़ के लिए बस थे बहत्तर हम लोग

मशवरा बौनों को ये है कि सदा हद में रहें
और भूलें न कि हैं कितने क़द-आवर हम लोग

साज़िशें हम को डुबोने की रचाता है अदू
ऐ 'ज़की' कह दो कि हैं ख़ूब शनावर हम लोग


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