किया है मैं ने तआ'क़ुब वो सुब्ह-ओ-शाम अपना मैं दश्त दश्त पुकारा किया हूँ नाम अपना मैं तुझ को भूल न पाऊँ यही सज़ा है मिरी मैं अपने-आप से लेता हूँ इंतिक़ाम अपना ये निस्बतें कभी ज़ाती कभी सिफ़ाती हैं हर एक शक्ल में लाज़िम है एहतिराम अपना इसी तलाश में पहुँचा हूँ इश्क़ तक तेरे कि इस हवाले से पा जाऊँ मैं दवाम अपना न जाने ख़ुद से है ये गुफ़्तुगू कि तुझ से है न जाने किस से मुख़ातब है ये कलाम अपना