शुऊ'र-ए-फ़ासला-ए-ख़ैर-ओ-शर दिया है मुझे तिरी निगाह ने तब्दील कर दिया है मुझे मिरा मक़ाम कहीं और था प लगता है किसी ने रौ में कहीं और धर दिया है मुझे बस इक गिला सा तिरी चश्म-ए-नीम-बाज़ से है कि उस ने वक़्त बहुत मुख़्तसर दिया है मुझे मुझे ख़बर नहीं सौदा है या तजस्सुस है मिरे ख़मीर ने क्या दर्द-ए-सर दिया है मुझे मैं अपनी राह बना लूँगा कोहसारों में ख़िरद ने कोह-कनी का हुनर दिया है मुझे