अक्स कोई किसी मंज़र में न था कोई भी चेहरा किसी दर में न था सुब्ह इक बूँद घटाओं में न थी चाँद भी शब को समुंदर में न था कोई झंकार रग-ए-गुल में न थी ख़्वाब कोई किसी पत्थर में न था शम्अ रौशन किसी खिड़की में न थी मुंतज़िर कोई किसी घर में न था कोई वहशत भी मिरे दिल में न थी कोई सौदा भी मिरे सर में न था थी न लज़्ज़त सुख़न-ए-अव्वल में ज़ाइक़ा हर्फ़-ए-मुकर्रर में न था प्यास की धुँद भी होंटों पे न थी ओस का क़तरा भी साग़र में न था