अक्स ने मेरे रुलाया है मुझे कोई अपना नज़र आया है मुझे पेश-ए-आईना बहुत सोचता हूँ किस लिए उस ने बनाया है मुझे किस लिए वुसअत-ए-सहरा दे कर तंग गलियों में फिराया है मुझे किस लिए मेरे ही सेहन-ए-जाँ में मिस्ल-ए-दीवार उठाया है मुझे मैं कहीं और का रहने वाला ग़म कहाँ खींच के लाया है मुझे जिस में उस छाँव की याद आ जाए अब तो वो धूप भी साया है मुझे निगह-ए-नाज़ से क्यूँकर पूछूँ क्यूँ निगाहों से गिराया है मुझे हाथ में ले के गिरेबाँ मेरा दिल ने दिल भर के सताया है मुझे सख़्त हैराँ हूँ सर-ए-कोह-ए-निदा कौन था किस ने बुलाया है मुझे