अक्स थे आवाज़ थी लेकिन कोई चेहरा न था नाचते गाते क़दम थे और कोई पहरा न था हादसों की मार से टूटे मगर ज़िंदा रहे ज़िंदगी जो ज़ख़्म भी तू ने दिया गहरा न था ख़्वाब की मानिंद गुज़रीं कैसी कैसी सूरतें दिल के वीराने में कोई अक्स भी ठहरा न था आग की बारिश हुई मंज़र झुलस कर रह गए शाम के साए में कोई गूँजता लहरा न था