अक्स-दर-अक्स आइना तक़्सीम एक बंदे पे सौ ख़ुदा तक़्सीम चश्म-ए-दर चश्म-ए-मौज मौज-ए-फ़ुरात रूह-दर-रूह कर्बला तक़्सीम इन्फ़िरादी शिकार चे मा'नी चार बाज़ों में फ़ाख़्ता तक़्सीम ख़ंजरों पर लहू की सद आहट सौ ज़बानों में ज़ाइक़ा तक़्सीम ख़्वान ले कर फ़रिश्ते उतरे थे मुफ़्लिसी कर गई अना तक़्सीम खोलता कौन पाँव की बंदिश हर क़दम पे था रास्ता तक़्सीम साँस करने की सोचिए 'परवेज़' अब नहीं होने को हवा तक़्सीम