हर्फ़ हूँ अपने मआ'नी ढूँढता हूँ में हक़ीक़त में कहानी ढूँढता हूँ तंग आ कर तंगी-ए-कौन-ओ-मकाँ से अपने अंदर बे-करानी ढूँढता हूँ छानता हूँ ख़ाक सहरा-ए-अदम में अपने होने की निशानी ढूँढता हूँ मेरी हर जानिब नए चेहरे सजे हैं अब कोई सूरत पुरानी ढूँढता हूँ माँगता हूँ तर्ज़-ए-नौ रस्म-ए-कुहन से ख़ुश्क दरिया में रवानी ढूँढता हूँ आरज़ू के बीच मुट्ठी में दबाए ज़ीस्त के सहरा में पानी ढूँढता हूँ हर्फ़ की हिद्दत से लब जलने लगे हैं अब ज़बान-ए-बे-ज़बानी ढूँढता हूँ जो सिखा दे आश्ती अहल-ए-ज़मीं को वो किताब-ए-आसमानी ढूँढता हूँ