अल्लाह अल्लाह ख़ून-ए-ग़रीबाँ हर तरफ़ हो रहा है चराग़ाँ हश्र-बर्दोश महशर-ब-दामाँ आने वाला है फिर कोई तूफ़ाँ वक़्त हर ज़ख़्म-ए-दिल की दवा है कौन ले अहल-ए-दुनिया का एहसाँ ज़िंदगी की हक़ीक़त ही क्या है ज़िंदगी एक ख़्वाब-ए-परेशाँ कौन है जो करे पुर्सिश-ए-ग़म वो गुरेज़ाँ तो दुनिया गुरेज़ाँ इक तबस्सुम भी बस में नहीं है कितना मजबूर है आज इंसाँ क्या बुझेगी ख़िज़ाँ के लहू से तेज़ है तिश्नगी-ए-बहाराँ चैन दिल को कहीं भी नहीं है एक है आशियाँ हो कि ज़िंदाँ लोग राहों में दम तोड़ते हैं मौत पहले न थी इतनी अर्ज़ां कुछ न बिगड़ेगा उर्दू ज़बाँ का क्यों 'ख़लिश' हो रहे हो हरासाँ