अल्लाह रे इस गुलशन-ए-ईजाद का आलम जो सैद का आलम वही सय्याद का आलम उफ़ रंग-ए-रुख़-ए-बानी-ए-बेदाद का आलम जैसे किसी मज़लूम की फ़रियाद का आलम पहरों से धड़कने की भी आती नहीं आवाज़ क्या जानिए क्या है दिल-ए-नाशाद का आलम मंसूर तो सर दे के सुबुक हो गया लेकिन जल्लाद से पूछे कोई जल्लाद का आलम मैं और तिरे हिज्र-ए-मुसलसल की शिकायत तेरा ही तो आलम है तेरी याद का आलम क्या जानिए क्या है मिरी मेराज-ए-मक़ामी आलम तो है सिर्फ़ इक मिरी उफ़्ताद का आलम अरबाब-ए-चमन से नहीं पूछो ये चमन से कहते हैं किसे निकहत-ए-बर्बाद का आलम क्यूँ आतिश-ए-गुल मेरे नशेमन को जलाए तिनकों में है ख़ुद बर्क़-ए-चमन-ज़ाद का आलम