अल्लाह रे यादों की ये अंजुमन-आराई हँसते हुए ग़म-ख़ाने महकी हुई तन्हाई कुछ तल्ख़ हक़ाएक़ ने मामूल बदल डाले अपनों से कम-आमेज़ी ग़ैरों से शनासाई ये कौन सा आलम है अफ़्सुर्दा-मिज़ाजी का गुलशन में भी वीरानी महफ़िल में भी तन्हाई 'इक़बाल' जिधर देखो ज़ुल्मात के पहरे हैं आसाँ-तलबी हम को किस मोड़ पे ले आई