अल्लाह ये किस का मातम है वो ज़ुल्फ़ जो बिखरी जाती है आँखें है कि भीगी जाती हैं दुनिया है कि डूबी जाती है कुछ बीते दिनों की यादें हैं और चारों तरफ़ तन्हाई सी मेहमाँ हैं कि आए जाते हैं महफ़िल है कि उजड़ी जाती है तदबीर के हाथों कुछ न हुआ तक़दीर की मुश्किल हल न हुई नाख़ुन हैं कि टूटे जाते हैं गुत्थी है कि उलझी जाती है क्या कोई मोहब्बत में यूँ भी बेनाम-ओ-निशाँ हो जाता है मैं हूँ कि अभी तक ज़िंदा हूँ दुनिया है कि भूली जाती है