अना ने टूट के कुछ फ़ैसला किया ही नहीं बयान अपना कभी मुद्दआ किया ही नहीं हर एक शख़्स को इंसान ही रखा हम ने कि आदमी को नज़र में ख़ुदा किया ही नहीं बस एक बार ही तोड़ा जहाँ ने अहद-ए-वफ़ा किसी से हम ने फिर अहद-ए-वफ़ा किया ही नहीं कई दिशाओं से गुज़रा है कारवान-ए-हयात ठहर के दिल को कहीं मुब्तला किया ही नहीं पहाड़ ज़ुल्म-ओ-सितम के हँसी में काट दिए अदा-ए-नाज़ कि कोई गिला किया ही नहीं छुआ जिसे भी वही लफ़्ज़ बन गया तारीख़ कि बे-असर कोई जुमला अदा किया ही नहीं तमाम उम्र सँवारा ग़ज़ल की दुनिया को कि 'अश्क' हम ने कुछ इस के सिवा किया ही नहीं