हवा ना-साज़गार-ए-गुल्सिताँ मा'लूम होती है अगर हँसती भी हैं कलियाँ फ़ुग़ाँ मा'लूम होती हैं ख़ुशी में अपनी ख़ुश-बख़्ती कहाँ मा'लूम होती है क़फ़स में जा के क़द्र-ए-आशियाँ मा'लूम होती है हर इक के ज़र्फ़ की वुसअ'त यहाँ मा'लूम होती है मोहब्बत आदमी का इम्तिहाँ मा'लूम होती है कभी शायद मोहब्बत का कोई हासिल निकल आए अभी तो राएगाँ ही राएगाँ मा'लूम होती है ये दिल को कर दिया कैसा किसी की कम-निगाही ने ज़रा सी फाँस चुभती है सिनाँ मा'लूम होती है खिंच आती हैं इसी साहिल पे ख़ुद दो अजनबी मौजें मोहब्बत एक जज़्ब-ए-बे-अमाँ मा'लूम होती है उफ़ुक़ ही पर अभी तक हैं तसव्वुर की हसीं शामें कहीं ठहरी हुई उम्र-ए-रवाँ मा'लूम होती हैं तुम इस हालत को क्या जानो न जानो ही तो अच्छा है हँसी जब आ के होंटों पर फ़ुग़ाँ मा'लूम होती है तिरी बे-मेहरियाँ आख़िर वो नाज़ुक वक़्त ले आएँ कि अपनों की मोहब्बत भी गराँ मा'लूम होती है नज़र आता नहीं शबनम का गिरना फूल का खिलना मोहब्बत की हक़ीक़त ना-गहाँ मा'लूम होती है चमन का दर्द है जिस दिल में तो चाहे कहीं उट्ठे उसे अपनी ही शाख़-ए-आशियाँ मा'लूम होती है नज़र फिरती थी वो पहले भी लेकिन यूँ न फिरती थी कुछ अब की ख़त्म होती दास्ताँ मा'लूम होती है अभी ख़ाकिस्तर-ए-'मुल्ला' से उठता है धुआँ कुछ कुछ कहीं पर कोई चिंगारी तपाँ मा'लूम होती है