अंदाज़-ए-नुमू कैसा अलमनाक निकाला पैवंद-ए-बदन मेरा सर-ए-ख़ाक निकाला उस ने दिल-ए-बे-कैफ़ को बीमार समझ कर दरमाँ के लिए नश्तर-ए-सफ़्फ़ाक निकाला इम्कान की गोदी के पले ज़ेहन-ए-रसा ने इक सब्ज़ा मियान-ए-ख़स-ओ-ख़ाशाक निकाला सहरा की तपिश प्यास की शिद्दत थी कि उस ने भूला हुआ इक क़िस्सा-ए-नमनाक निकाला अफ़्सोस सलातीन चुका पाए न क़ीमत सीने से जो हम ने दुर-ए-अफ़्लाक निकाला