अंधेरे दूर करे नूर से उजाले मुझे कोई तो हो जो तिरे बा'द भी सँभाले मुझे मैं मर रहा हूँ मगर साँस दे रहे हैं बहम तुम्हारी ज़ात से मंसूब कुछ हवाले मुझे ये रूद-ए-ख़्वाब नहीं मख़मसे का दरिया है डुबोए इश्क़ कभी जोश में उछाले मुझे अभी मैं रेल की पटरी से दूर बैठा हूँ अभी है वक़्त अगर हो सके मना ले मुझे नहीं है याद मुझे नाम हाँ मगर आँखें शराब भूल चुका याद हैं प्याले मुझे मैं सौंप दूँ उसे इनआ'म में बची साँसें मिरे वजूद के मलबे से जो निकाले मुझे निशान मेल की रंगीनियों के सदक़े हुए बहुत अज़ीज़ हैं पाँव के सारे छाले मुझे