अंजाम हर इक शय का ब-जुज़ ख़ाक नहीं है क्या है जो ये आलम ख़स-ओ-ख़ाशाक नहीं है कह दो वो सता कर मुझे बे-फ़िक्र न बैठें मेरे ही लिए गर्दिश-ए-अफ़्लाक नहीं है आँखों से हर इक पर्दा-ए-मौहूम हटा दे इतनी निगह-ए-शौक़ अभी चालाक नहीं है कर चाक-ए-गरेबाँ से न अंदाज़ा-ए-वहशत दीवाने अभी दामन-ए-दिल चाक नहीं है 'सीमाब' दुआ कीजिए क्या सब्र-ओ-सुकूँ की शाइस्ता-ए-तस्कीं दिल-ए-ग़मनाक नहीं है