ऐन-मुमकिन है किसी तर्ज़-ए-अदा में आए क़िस्सा-ए-दर्द-ए-वफ़ा सौत-ओ-सदा में आए रुत बदलते ही नए रंग के मंज़र उभरे कुछ परिंदे भी नई मौज-ए-हवा में आए हम तो आईना-नुमा थे ही सफ़ा-केशी में नाम कुछ और भी अर्बाब-ए-सफ़ा में आए इश्क़ ता-हाल तो मतरूक नहीं हो पाया इन्क़िलाबात भी गो राह-ए-वफ़ा में आए कुछ गुल-ए-नीलोफ़री झील की तारीकी से अपनी दानिस्त में अक़्लीम-ए-बक़ा में आए क्या कहें उस को तज़ादात-ए-ज़माना के सिवा कितने दरवेश थे जो शाही क़बा में आए ख़्वाब आँखों में लिए हम भी ब-ताईद-ए-जुनूँ कैसे इक जल्वा-गह-ए-ख़्वाब-नुमा में आए शोरिश-ए-अहद में ये तज़्किरा-ए-इश्क़-ए-वफ़ा जैसे नग़्मा सा कोई बाँग-ए-दरा में आए ख़ुद को गुम कर के किसी और के पा लेने तक मरहले और भी तकमील-ए-अना में आए