अपने आबा से बहुत दूर हुआ जाता है आदमी इश्क़ में मजबूर हुआ जाता है इस में क्या चाँद सितारों को क़बाहत होगी ज़र्रा-ए-ख़ाक अगर नूर हुआ जाता है देखना यार वही होगा वही होना है जो मेरे अल्लाह को मंज़ूर हुआ जाता है दर्द ऐसा कि बढ़ता है मिरे सीने में ज़ख़्म ऐसा कि नासूर हुआ जाता है नक़्श बन कर यही उभरेगा सर-ए-सेहन-ए-जहाँ अक्स मंज़र में जो मस्तूर हुआ जाता है उस के रुख़्सार से होता हुआ लब तक पहुँचा अश्क तो मशरब-ए-अंगूर हुआ जाता है मैं उसे चाहते रहने में हूँ मसरूफ़ 'फ़िदा' ये गुनह मुझ से ब-दस्तूर हुआ जाता है