अपने दर से जो उठाते हैं हमें ख़ाक में आप मिलाते हैं हमें है जो मंज़ूर जफ़ा दर-पर्दा मुँह वो ग़ैरों में दिखाते हैं हमें ग़ैर को पास बिठा रखते हैं जब कभी आप बुलाते हैं हमें गर्मियाँ ग़ैर को दिखला दिखला बज़्म में आप जलाते हैं हमें शब-ए-फ़ुर्क़त में फ़लक के तारे दाग़-ए-दिल याद दिलाते हैं हमें उन के अंदाज़-ए-सुख़न हैं मालूम ग़ैर को कह के सुनाते हैं हमें फिर किसी गुल पे हुआ दिल माइल दाग़-ए-ताज़ा नज़र आते हैं हमें छोड़ दें आप की हमराही हम वाह क्या राह बताते हैं हमें तू हमें राह बताए जिस से ग़ैर वो राह बताते हैं हमें इत्र-ए-गुल से नहीं जब दिल भरता अपना रूमाल सुँघाते हैं हमें शब को अफ़्साना-ए-दिल कह के 'असर' आप रोते हैं रुलाते हैं हमें