अपने दुश्मन हज़ार निकले हैं हाँ मगर बा-वक़ार निकले हैं हम भी क्या बादा-ख़्वार हो जाएँ शैख़ तो बादा-ख़्वार निकले हैं घर का रस्ता न मिल सका हम को घर से जो एक बार निकले हैं चाँद बिन चाँदनी कहाँ होगी गो सितारे हज़ार निकले हैं ख़ून-ए-दिल दे के जिन को सींचा था नख़्ल सब ख़ार-दार निकले हैं बंद कूचे की दूसरी जानिब रास्ते बे-शुमार निकले हैं बा'द इक उम्र की ख़मोशी के मिसरे सब ज़ोर-दार निकले हैं हम तो समझे थे मस्त हैं 'आसी' आप भी होशियार निकले हैं कोई कहता था ख़ुश हैं 'आसी-जी' वो मगर दिल-फ़िगार निकले हैं