अपने गिर्द-ओ-पेश का भी कुछ पता रख दिल की दुनिया तो मगर सब से जुदा रख लिख बयाज़-ए-मर्ग में हर जा अनल-हक़ और किताब-ए-ज़ीस्त में बाब-ए-ख़ुदा रख उस की रंगत और निखरेगी ख़िज़ाँ में ये ग़मों की शाख़ है इस को हरा रख आ ही जाएगी उदासी बाल खोले आज अपने दिल का दरवाज़ा खुला रख यूँ भी बह जाएगा सब सैल-ए-बला में अपने घर के सब दर-ओ-दीवार ढा रख ना-मुरादी का उन्हें भी तजरबा हो उन के रस्ते में भी कोई सानेहा रख सनसनाती रात के आने से पहले दिल में जाती धूप का टुकड़ा सजा रख बेश-क़ीमत हैं ये दिल के ज़ख़्म 'पाशी' इन चराग़ों को हवाओं से बचा रख