अपने हम-रंग चाहते थे हम एक दिल-तंग चाहते थे हम नींद बे-ख़्वाब चाहते थे हम रात बे-रंग चाहते थे हम जीतने हारने की बात न थी उस से बस जंग चाहते थे हम शब थी तन्हाई थी उदासी थी अब तो आहंग चाहते थे हम ख़ुद को ही तंग आ गए थे हम उस को इस ढंग चाहते थे हम ये सर-ए-इश्क़ हो गई वर्ना क्या कोई जंग चाहते थे हम