अपने इक़रार पे क़ाएम न वो इंकार पे है किस परी-ज़ाद का साया मिरे दिलदार पे है फ़िक्र-ए-तहज़ीब न अस्नाफ़-ए-अदब से रग़बत आज-कल सब की नज़र दिरहम-ओ-दीनार पे है ऐसा लगता है चली आएगी पहलू में अभी क़द्द-ए-आदम तिरी तस्वीर जो दीवार पे है मुझ को इस ज़ुल्मत-ए-शब-ज़ार से निस्बत ही क्या मेरी बेदार नज़र सुब्ह के आसार पे है मैं तो बिकने पे हूँ राज़ी ब-सर-ओ-चश्म 'सहर' फ़ैसला आ के टिका मेरे ख़रीदार पे है