अपने जी में जो ठान लेंगे आप या हमारा बयान लेंगे आप जुस्तुजू क़ाएदे की हो वर्ना दर-ब-दर ख़ाक छान लेंगे आप अहद-ए-हाज़िर के बाद आएगा वो ज़माना कि जान लेंगे आप यूँ तो ग़ुस्सा हराम है लेकिन रोज़ जब इम्तिहान लेंगे आप आप को मेहरबाँ समझते हैं और क्या नाक कान लेंगे आप साफ़ कहिए कि चाहते क्या हैं क्या ग़रीबों की जान लेंगे आप ये हरीफ़ान-ए-कम-नज़र ऐ 'शाद' मुझ को इक रोज़ मान लेंगे आप