अपने ख़ूँ से जो हम इक शम्अ जलाए हुए हैं By Ghazal << पानी में भी प्यास का इतना... मैं जी रहा हूँ तेरा सहारा... >> अपने ख़ूँ से जो हम इक शम्अ जलाए हुए हैं शब-परस्तों पे क़यामत भी तो ढाए हुए हैं जाने क्यूँ रंग-ए-बग़ावत नहीं छुपने पाता हम तो ख़ामोश भी हैं सर भी झुकाए हुए हैं महफ़िल-आराई हमारी नहीं इफ़रात का नाम कोई हो या कि न हो आप तो आए हुए हैं Share on: