अपने मन में झाँक कर भी ख़ुद से बेगाना रहा तू हक़ीक़त आश्ना हो कर भी दीवाना रहा रुख़ अगरचे जानिब-ए-का'बा रहा है शैख़ का दिल मगर याद-ए-बुताँ से इक परी-ख़ाना रहा संग-ए-असवद को दिया बोसा तो दिल कहने लगा का'बा-ओ-क़िबला से कितनी दूर बुत-ख़ाना रहा एक दिन पी कर ज़रा सच कह दिया था उम्र भर शक्ल से बेज़ार मेरी पीर-ए-मय-ख़ाना रहा इश्क़ ने बख़्शी है वो शोहरत 'नरेश' इक उम्र तक बच्चे बच्चे की ज़बाँ पर मेरा अफ़्साना रहा