अपनी ज़द पर थे खड़े हम को तो बचना क्या था जो हुआ ठीक हुआ और तो होना क्या था मरते मरते ही मिरे दर्द की लज़्ज़त के हरीस बे-मुदावा जो न मरते तो मुदावा क्या था उफ़ वो अतराफ़ में फैली हुई अशिया का हुजूम हाए इस शोर में इक दिल का धड़कना क्या था बे-दिली हाए नज़ारा कि मुझे याद नहीं सरसरी देखा था क्या और न देखा क्या था रात उस बज़्म में तस्वीर के मानिंद थे हम हम से पूछे तो कोई शम्अ का जलना क्या था