अपनी क़िस्मत की लकीरों को इशारा न मिला कोई जुगनू कोई मोती कोई तारा न मिला जिन का बचपन मिरी बाँहों में ही गुज़रा था कभी इस बुढ़ापे में मुझे उन का सहारा न मिला ग़म के मारे तो हज़ारों ही ज़माने में मिले मेरे जैसा कोई तक़दीर का मारा न मिला घूम आए हैं जहाँ सारा मगर आज तलक आप के जैसा हँसी कोई दोबारा न मिला अपनी पलकों को बिछाया तिरी राहों में मगर तेरी आमद का कोई दिल को इशारा न मिला मुझ को दुनिया ने तो नफ़रत के सिवा कुछ न दिया मर ही जाऊँगा अगर प्यार तुम्हारा न मिला जो सफ़ीने को किनारे से लगा देता मिरे हाए क़िस्मत मुझे ऐसा कोई धारा न मिला है ग़मों का वो भँवर जिस में फँसा हूँ ऐ 'मुकेश' ज़िंदगी को मिरी ख़ुशियों का किनारा न मिला