अपना हर इक उसूल मुझे हारना पड़ा थी जीत ही फ़ुज़ूल मुझे हारना पड़ा तदबीर मेरी एक न मानी बहार ने पतझड़ के आगे फूल मुझे हारना पड़ा एज़ाज़ ए'तिमाद है उस का दिया हुआ गरचे न था क़ुबूल मुझे हारना पड़ा उस की ख़ुशी थी बाइस-ए-फ़त्ह-ए-हयात-ए-नौ जब वो हुआ मलूल मुझे हारना पड़ा जब तक हवा थी साफ़ था मैदान हाथ में आँखों में आई धूल मुझे हारना पड़ा मेरे भी क्या नसीब कि वक़्त-ए-दुआ 'मुहीत' शेरों का था नुज़ूल मुझे हारना पड़ा