अपना जैसा भी हाल रक्खा है तेरे ग़म को निहाल रक्खा है शाएरी क्या है हम ने जीने का एक रस्ता निकाल रक्खा है हम ने घर की सलामती के लिए ख़ुद को घर से निकाल रक्खा है मेरे अंदर जो सर-फिरा है उसे मैं ने ज़िंदाँ में डाल रक्खा है एक चेहरा है हम ने जिस के लिए आइनों का ख़याल रखा है इस बरस का भी नाम हम ने तो तेरी यादों का साल रक्खा है गिरते गिरते भी हम ने हाथों पर आसमाँ को सँभाल रक्खा है क्या ख़बर शीशागर ने क्यूँ 'अज़हर' मेरे शीशे में बाल रक्खा है