अपना पता न अपनी ख़बर छोड़ जाऊँगा बे-सम्तियों की गर्द-ए-सफ़र छोड़ जाऊँगा तुझ से अगर बिछड़ भी गया मैं तो याद रख चेहरे पे तेरे अपनी नज़र छोड़ जाऊँगा ग़म दूरियों का दूर न हो पाएगा कभी वो अपनी क़ुर्बतों का असर छोड़ जाऊँगा गुज़रेगी रात रात मिरे ही ख़याल में तेरे लिए मैं सिर्फ़ सहर छोड़ जाऊँगा जैसे कि शम्अ-दान में बुझ जाए कोई शम्अ' बस यूँ ही अपने जिस्म का घर छोड़ जाऊँगा मैं तुझ को जीत कर भी कहाँ जीत पाऊँगा लेकिन मोहब्बतों का हुनर छोड़ जाऊँगा आँसू मिलेंगे मेरे न फिर तेरे क़हक़हे सूनी हर एक राहगुज़र छोड़ जाऊँगा संसार में अकेला तुझे अगले जन्म तक है छोड़ना मुहाल मगर छोड़ जाऊँगा उस पार जा सकेंगी तो यादें ही जाएँगी जो कुछ इधर मिला है उधर छोड़ जाऊँगा ग़म होगा सब को और जुदा होगा सब का ग़म क्या जाने कितने दीदा-ए-तर छोड़ जाऊँगा बस तुम ही पा सकोगे कुरेदोगे तुम अगर मैं अपनी राख में भी शरर छोड़ जाऊँगा कुछ देर को निगाह ठहर जाएगी ज़रूर अफ़्साने में इक ऐसा खंडर छोड़ जाऊँगा कोई ख़याल तक भी न छू पाएगा मुझे ये चारों सम्त आठों पहर छोड़ जाऊँगा