अपना साया भी न हम-राह सफ़र में रखना पुख़्ता सड़कें ही फ़क़त राहगुज़र में रखना ग़ैर-महफ़ूज़ समझ कर न ग़नीम आ जाए दोस्तो! मैं न सही ख़ुद को नज़र में रखना कहीं ऐसा न हो मैं हद्द-ए-ख़बर से गुज़रूँ कोई आलम हो मुझे अपनी ख़बर में रखना आइना टूट के बिखरे तो कई अक्स मिले अब हथौड़ा ही कफ़-ए-आइना-गर में रखना मश्ग़ले किब्र-सिनी में वही बचपन वाले कभी तस्वीरें कभी आइने घर में रखना बहते दरियाओं को साहिल ही से तकते रहना और जलते हुए घर दीदा-ए-तर में रखना कोई तो ऐसा हो जो तुम को बचाए तुम से कोई तो अपना बही-ख़्वाह सफ़र में रखना कोई भी चीज़ न रखना कि तआ'क़ुब में हैं लोग अपनी मिट्टी ही मगर दस्त-ए-हुनर में रखना जंगलों में भी हवा से वही रिश्ता 'अख़्तर' शहर में भी यही सौदा मुझे सर में रखना