अपना सोचा हुआ अगर हो जाए एक आलम हमारे सर हो जाए शोर दश्त-ए-सुकूत में कम है ऐ हवा तू ही तेज़-तर हो जाए न करेंगे वो रुख़ इधर अपना चाहे दुनिया इधर-उधर हो जाए दर्द आवाज़ रफ़्ता रफ़्ता बने आह-ए-शब नाला-ए-सहर हो जाए कितनी राहें खुली हैं अपने लिए देखिए कब किधर सफ़र हो जाए इस लिए होशियार रहता हूँ क्या ख़बर कब वो बे-ख़बर हो जाए