अपना वजूद मैं ने अब इस तरह पाक कर लिया जल कर तमाम इश्क़ में ख़ुद को ही ख़ाक कर लिया उस के लिए तो खेल था शोख़ी थी या मज़ाक़ था मैं ने ही सब मोआ'मला अंदोह-नाक कर लिया अब के जुनूँ में सानेहा ऐसा भी हो गया कि बस दामन तो ख़ैर छोड़िए सीना ही चाक कर लिया उस से न राब्ता रहे उस की ख़ुशी इसी में थी उस की ख़ुशी के वास्ते ख़ुद को हलाक कर लिया ख़्वाबों से वो निकल के अब आँखों में जागने लगा मैं ने शदीद इश्क़ में वो इंहिमाक कर लिया ऐसा था दिल का सानेहा वो संग-दिल भी रो पड़ा 'ख़ालिद' ने जब ज़रा से ग़म का इश्तिराक कर लिया