अपने अंदर का कुछ उबाल निकाल ऐ सुख़नवर नया ख़याल निकाल लोग मलबे तले दबे हुए हैं छोड़ काग़ज़ क़लम कुदाल निकाल तू बहुत वक़्त ले चुका है मिरा अब मिरे रोज़-ओ-माह-ओ-साल निकाल या मिरी बात का जवाब बना या मिरे ज़ेहन से सवाल निकाल देखता हूँ मैं तेरी शीशागरी चल ज़रा आइने से बाल निकाल जोड़ आइंदा को गुज़िश्ता से और इस में से मेरा हाल निकाल इस को चून-ओ-चरा पसंद नहीं है अपनी बातों से क़ील-ओ-क़ाल निकाल मैं तिरे सामने पड़ा हुआ हूँ आइने मेरे ख़द्द-ओ-ख़ाल निकाल तू तो कहता था सैंकड़ों हैं 'अज़ीज़' चल कोई एक ही निकाल निकाल