अपने ग़मों की बात नहीं है हँसी की बात इस रंग में भी करते हैं हम ज़िंदगी की बात दानिशवरों की बज़्म में लोगो कहाँ चले लो मेरी वहशतों से सुनो आगही की बात अहल-ए-ख़िरद पे फ़र्ज़ हुआ सज्दा-ए-जुनूँ महफ़िल में जब छिड़ी मिरी दीवानगी की बात बर्बाद हैं बगूले परेशाँ शमीम-ए-गुल पहुँची कहाँ कहाँ तिरी आवारगी की बात क्या क्या ज़माना मुझ पे लगाए न तोहमतें लहजा बदल के कह दूँ अगर आप ही की बात है अपनी अपनी सब को ही 'बिस्मिल' पड़ी हुई सुनता नहीं है ग़ौर से कोई किसी की बात