अपने लफ़्ज़ों में कि हर चंद अयाँ हूँ मैं भी बन के ज़ख़्मों की कसक ख़ुद में निहाँ हूँ मैं भी तेरे आग़ाज़ से अंजाम है रौशन मेरा बर्ग-ए-आवारा कोई ख़ाक-ए-रवाँ हूँ मैं भी मो'तबर अब तो बना ऐ निगह-ए-नाज़ मुझे इस भरे शहर में बेनाम-ओ-निशाँ हूँ मैं भी वज़्अ'-दारी का ख़रीदार कहीं से लाओ अपनी तहज़ीब की उठती सी दुकाँ हूँ मैं भी तेरे ख़्वाबों से है आबाद ख़राबा मेरा तेरी यादों में कराँ-ता-ब-कराँ हूँ मैं भी