अपनी आँखों में हसीं ख़्वाब सजाए रक्खो लाख तूफ़ान उठें शम्अ' जलाए रक्खो रात फिर रात है इक रोज़ गुज़र जाएगी सुब्ह की आस अज़ाएम में बसाए रक्खो ख़्वाहिश-ए-दिल की हवा तेज़ बहुत है यारो आग पिंदार की सीने में जलाए रक्खो जीतना चाहो तो हर मात सहो हँस हँस कर फ़िक्र-ए-मायूस ख़यालों से बचाए रक्खो यूँ ज़रा देर को दिल से ही लुभा लेते हैं बात तो जब है कि ता-उम्र लुभाए रक्खो तुम ने सच बोला है मस्लूब तुम्हें होना है अपने काँधे पे सलीब अपनी उठाए रक्खो गर ये चाहो कि अयाँ कर्ब न हो सीने का जान-ए-'शहज़ाद' निगाहों से बनाए रक्खो