अपनी हस्ती का अगर हुस्न नुमायाँ हो जाए आदमी कसरत-ए-अनवार से हैराँ हो जाए तुम जो चाहो तो मिरे दर्द का दरमाँ हो जाए वर्ना मुश्किल है कि मुश्किल मिरी आसाँ हो जाए ओ नमक-पाश तुझे अपनी मलाहत की क़सम बात तो जब है कि हर ज़ख़्म नमकदाँ हो जाए देने वाले तुझे देना है तो इतना दे दे कि मुझे शिकवा-ए-कोताही-ए-दामाँ हो जाए उस सियह-बख़्त की रातें भी कोई रातें हैं ख़्वाब-ए-राहत भी जिसे ख़्वाब-ए-परेशाँ हो जाए सीना-ए-शिबली-ओ-मंसूर तो फूँका तू ने इस तरफ़ भी करम ऐ जुम्बिश-ए-दामाँ हो जाए आख़िरी साँस बने ज़मज़मा-ए-हू अपना साज़-ए-मिज़राब-ए-फ़ना तार-ए-रग-ए-जाँ हो जाए तू जो असरार-ए-हक़ीक़त कहीं ज़ाहिर कर दे अभी 'बेदम' रसन-ओ-दार का सामाँ हो जाए