अपनी हस्ती से था ख़ुद मैं बद-गुमाँ कल रात को कुछ न था अंदेशा-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ कल रात को चाँदनी बरसात सेहन-ए-गुलिस्ताँ दिलकश हवा थीं हुजूम-ए-ग़म में ये रंगीनियाँ कल रात को वुसअ'त-ए-तख़ईल के हल्क़े में था अर्श-ए-बरीं देखती थीं चश्म-ए-दिल कौन-ओ-मकाँ कल रात को मिल रहे थे दस्त-ए-उल्फ़त से मुझे जाम-ए-शराब मेहरबाँ था वो बुत-ए-ना-मेहरबाँ कल रात को वो मोहब्बत की निगाहें वो मोहब्बत के कलाम हाँ दो-बाला थी अदा-ए-दिल-सताँ कल रात को हर नज़र पैग़ाम हर अंदाज़ में रक़्साँ उम्मीद और ही था उस का तर्ज़-ए-इम्तिहाँ कल रात को इफ़्फ़त-ए-उलफ़त से थी आईना-ए-दिल की जिला वर्ना था जज़्बात का दरिया रवाँ कल रात को ज़ौक़ से वो सुन रहे थे दास्तान-ए-ग़म मिरी हो रहा था इंक़िलाब-ए-आसमाँ कल रात को दिल की इक आवाज़ थी इस बज़्म में तफ़सीर-ए-ग़म हो चुके थे वो भी मजबूर-ए-फ़ुग़ाँ कल रात को तफ़रक़े बे-ऐत्मादी दुश्मनी मक्र-ओ-फ़रेब थी तिरी ता'बीर ऐ हिन्दोस्ताँ कल रात को सो चुके थे चंद ही घंटों में अरबाब-ए-नशात सुब्ह तक था साथ वो आराम-ए-जाँ कल रात को रंग-ए-सहबा चश्म-ए-नर्गिस में था 'आसी' वक़्त-ए-सुब्ह जागने से हो रही थीं ख़ूँ-फ़िशाँ कल रात को