अपनी ही रवानी में बहता नज़र आता है ये शहर बुलंदी से दरिया नज़र आता है देता है कोई अपने दामन की हवा उस को शो'ला सा मिरे दिल में जलता नज़र आता है उस हाथ का तोहफ़ा था इक दाग़ मिरे दिल पर वो दाग़ भी अब लेकिन जाता नज़र आता है आँखों के मुक़ाबिल है कैसा ये अजब मंज़र सहरा तो नहीं लेकिन सहरा नज़र आता है इक शक्ल सी बनती है हर शब मिरी नींदों में इक फूल सा ख़्वाबों में खिलता नज़र आता है आँखों ने नहीं देखी उस जिस्म की रानाई ये चार तरफ़ जिस का साया नज़र आता है दरिया को किनारे से क्या देखते रहते हो अंदर से कभी देखो कैसा नज़र आता है फिर ज़ौ में 'नदीम' अपनी कुछ कम है सितारा वो ये रात का आईना धुँदला नज़र आता है