अपनी ख़ता को इस ने मिरे नाम लिख दिया उस पर कमाल ये कि सर-ए-आम लिख दिया अंधों के दरमियान रहूँ आइना मिसाल मेरे लिए ख़ुदा ने अजब काम लिख दिया नाराज़ है वो मुझ से बस इतनी सी बात पर तीरा-शबी को दिन न लिखा शाम लिख दिया कुछ बन पड़ा न हसरत-ए-तामीर से तो फिर उजड़े हुए खंडर को दर-ओ-बाम लिख दिया जब तीरगी बढ़ेगी तो चमकेगा और भी दिल के लहू से हम ने तिरा नाम लिख दिया कहते हैं किस को सब्र-ओ-तहम्मुल ये हम से पूछ तकलीफ़ जो मिली उसे आराम लिख दिया ये भी हुआ कि जिस ने उजाड़े थे घर के घर मुंसिफ़ ने उस को लाएक़-ए-इनआ'म लिख दिया चाही थी मैं ने जिस की भलाई तमाम उम्र उस ने मिरी दुआओं को दुश्नाम लिख दिया कोई तो बात होगी कि अहल-ए-निगाह ने जितने समर थे पुख़्ता उन्हें ख़ाम लिख दिया अब वास्ता पड़ा है तो 'माहिर' खुला ये राज़ पत्थर बदन को हम ने गुल-अंदाम लिख दिया