अपनी ख़ुशियों पे तो फ़रहत भी नहीं कर सकते हम तो इज़हार-ए-मसर्रत भी नहीं कर सकते हाकिम-ए-वक़्त है अब ख़ुद ही मदद-गार-ए-सितम उस से ज़ुल्मों की शिकायत भी नहीं कर सकते तुम को माँ बाप ने पैदा किया पाला पोसा तुम कि माँ बाप की ख़िदमत भी नहीं कर सकते इस क़दर टूट के चाहा था कभी हम ने तुझे हम तुझे चाह के नफ़रत भी नहीं कर सकते तुम ने ज़ुल्फ़ों में किया क़ैद मिरी नींदों को क्या रिहा कर के इनायत भी नहीं कर सकते इतने मानूस हैं हम तेरी गली से जानाँ हम तिरे शहर से हिजरत भी नहीं कर सकते उन को ये ज़ो'म कि वो ख़ुद हैं मोबल्लिग़ ऐ 'ज़की' शैख़ साहब को नसीहत भी नहीं कर सकते हम असीरान-ए-रिवायत की ये मुश्किल है 'ज़की' हम रिवायत से बग़ावत भी नहीं कर सकते